शिक्षा के क्षेत्र में भारत बना नई महाशक्ति
प्यारे दोस्तों दुनिया में भारत ही केवल एक ऐसा देश है जो युवाओं का देश कहलाता है और अब तो भारत शिक्षा के क्षेत्र में भी सिरमोर बनने के लिए
तत्पर है। आने वाले समय में जल्द ही भारत शिक्षा के क्षेत्र में एक नई तस्वीर सामने लेकर आएगा। जिससे दुनिया भी भारत को शिक्षा के क्षेत्र में लोहा मानने के लिए मजबूर होगी।
तत्पर है। आने वाले समय में जल्द ही भारत शिक्षा के क्षेत्र में एक नई तस्वीर सामने लेकर आएगा। जिससे दुनिया भी भारत को शिक्षा के क्षेत्र में लोहा मानने के लिए मजबूर होगी।
हालही में शिक्षा के क्षेत्र में सुपर शक्ति समझे जाने वाल देश अमेरिका है लेकिन आने वाले समय में भारत और चीन अमेरिका को पीछे छोड़ने वाले है। दोस्तों कुछ समय में भारत में अमेरिका से ज्यादा ग्रेजुएट्स होंगे। यह निष्कर्ष ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलमेंट (ओईसीडी) नाम की संस्था के अध्ययन में सामने आया है।
लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसार अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले लगभग ३ साल में दुनिया के हर 10 ग्रेजुएट्स में से चार चीन और भारत से होंगे। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार पच्चीस साल से चौंतीस साल की उम्र के बीस करोड़ विश्वविद्यालय स्नातकों में से चालीस प्रतिशत स्नातक इन्हीं दोनों देशों से होंगे।
प्यारे दोस्तों इन नए आंकड़ों को दुनिया में स्नातकों की कुल संख्या में बदलाव के तौर पर देखा जा सकता है। एशिया की तेजी से मजबूत होती अर्थव्यवस्था शिक्षा के क्षेत्र में पश्चिमी यूरोप के देशों और अमेरिका को पछाड़ देने में योग्य बन जायगी।
ओईसीडी के मुताबिक आने वाले लगभग ३ साल यानी तक चीन में ग्रेजुएट्स की संख्या में उन्तीस फीसद तक बढ़ोतरी हो जाने के चान्स है और चीन पहले नंबर पर होगा। भारत बारह प्रतिशत के साथ दूसरे व अमेरिका तीसरे स्थान पर होगा।
दोस्तों ओईसीडी की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में ग्रेजुएट की संख्या में 11 प्रतिशत तक की गिरावट हो जाने की सम्भवना की गई है। जिन देशों में स्नातक युवाओं के बढ़ने की संभावना है, उनमें इंडोनेशिया के पांचवें स्थान पर रहने की संभावना बनी है।
दोस्तों छात्रों को शिक्षा के प्रति जागरूक होना और बनते माहौल को ध्यान में रखकर देखते हुए विकासशील देशों में ग्रेजुएट्स की संख्या बढ़ती जा रही है। इन आंकड़ों से यह सवाल उठता है कि क्या उच्च शिक्षा में पश्चिमी देशों के साम्राज्य का अंत होता रहा है । द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, जापान और रूस के विश्वविद्यालयों का ही शिक्षा में बोलबाला बना हुआ था।
दोस्तों पहले से ही अमेरिका तो एजुकेशन में सुपरपॉवर रहा है लेकिन वर्ष 2000 तक जापान जैसा एक छोटा-सा देश भी ग्रेजुएट्स की संख्या में भारत के बराबर था। संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन में स्तनको की संख्या भिन्न थी। ओईसीडी के अनुमानों को देखने पर तो दुनिया के औद्योगीकृत देशों में ग्रेजुएट्स की संख्या बढ़ी है।
इन आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो एक अच्छी बात है कि शिक्षा के क्षेत्र में हमारा देश आगे बढ़ने के लिए अग्रसर है लेकिन देखना तो यह है कि इन ग्रेजुएट्स में से कितनों को रोजगार मिलेगा। रोजगार पर इस बढ़ोतरी का क्या असर पड़ेगा। एक अनुमान के हीसदाब से देखा जाए तो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के ग्रेजुएट्स की रोजगार संभावनाएं अधिक बढ़ेगी।
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