क्यों है मुग़ल सम्राट अकबर महान जानिए
अकबर के बारे में तो सभी ने पढ़ा है और यदि आपने अकबर बादशाह का इतिहास नहीं पढ़ा है तो आप इस आर्टिकल के माध्यम से अकबर के बारे
जान सकते है कि क्यों है मुग़ल सम्राट अकबर महान हैं। वैसे तो कुछ लोग कहते है अकबर महान था और कुछ लोग कहते है महान नहीं था। हर तरह की बात के पीछे सबके अपने अपने लॉजिक है जिसके बारे में हम बात करेंगे तो चलिए जानते है कि क्यों अकबर महान कहा जाता है? बादशाह अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबरमहान) के नाम से भी जाना जाता है। अकबर मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर का पोता और हुमायूं और हमीदा बानो का बेटा था। बाबर का वंश तैमूर से था, अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की नसों में एशिया की दो प्रसिद्ध आतंकी जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था।
अकबर का जीवन परिचय: अकबर हुमायूं और हमीदा बानो का बेटा था। बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर का जन्म पंद्रह अक्टूबर पंद्रह सौ बियालीस ई. को अमरकोट शहर में हुआ था। अकबर का प्रारंभिक जीवन बहुत ही मुश्किलों में बीता, जब अकबर पैदा हुआ था तो उसके पिता के पास उसका जन्मोत्सव मनाने के लिए कुछ नही था, उसके पास केवल एक कस्तूरी थी जिसको तोड़कर हुमायूँ ने अपने सरदारों मे बाँटा था| कस्तूरी
में
एक
तीक्ष्ण
गंध
होती
है
और
यह
नर
मृग
में
स्थित
एक
ग्रंथि
से
प्राप्त
होती
है|
क्यों
अकबर महान
कहा जाता
है: सन् पंद्रह सौ छप्पन में राजधानी दिल्ली में अकबर के पिता हुमायुँ की मृत्यु हो गई, फिर गुरदासपुर के कलनौर नामक स्थान पर चौदह वर्ष की आयु में अकबर का राजतिलक हुआ। बादशाह अकबर का संरक्षक बैराम खान को बनाया गया जिसका प्रभाव उस पर पंद्रह सौ साठ तक रहा। तत्कालीन मुगल राज्य केवल काबुल से दिल्ली तक ही फैला हुआ था। हेमु के नेतृत्व में अफगान सेना पुनः संगठित होकर उसके सम्मुख चुनौती बनकर खड़ी थी। सन् पंद्रह सौ साठ में बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर ने स्वयं सत्ता संभाल ली और अपने संरक्षक बैरम खां को हटा दिया। अब अकबर के अपने हाथों में सत्ता थी लेकिन अनेक कठिनाइयाँ भी थीं।
जैसे – शम्सुद्दीन अतका
खान की
हत्या पर
उभरा जन
आक्रोश (1563), उज़बेक विद्रोह
(1564-65) और मिर्ज़ा भाइयों
का विद्रोह
(1566-67) किंतु बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर ने
बड़ी कुशलता
से इन
समस्याओं को
हल कर
लिया। अपनी
कल्पनाशीलता से
उसने अपने
सामंतों की
संख्या बढ़ाई।
सन् 1562 में आमेर
के शासक
से उसने
समझौता किया
– इस प्रकार
राजपूत राजा
भी उसकी
ओर हो
गये। इसी
प्रकार उसने
ईरान से
आने वालों
को भी
बड़ी सहायता
दी। भारतीय
मुसलमानों को
भी उसने
अपने कुशल
व्यवहार से
अपनी ओर
कर लिया।
हिन्दुओं पर
लगे जज़िया
कर को
पंद्रह सौ
बासठ में
अकबर ने
हटा दिया
था।
अपने शासन के
शुरु में
ही अकबर
यह समझ
गया कि
सूरी वंश
को खत्म
किए बिना
वह चैन
से नहीं
रहेगा। इसलिए
वह सूरी
वंश के
सबसे बलवान
शासक सिकंदर
शाह सूरी
पर युद्ध
करने पंजाब
चल पड़ा।
दिल्ली का
शासक उसने
मुग़ल सेनापति
तारदी बैग
खान को
बना दिया।
अकबर के
लिए पानिपत
का युद्ध
निर्णायक था
हारने का
मतलब फिर
से काबुल
जाना। जीतने का
अर्थ हिंदुस्तान पर राज ! पराक्रमी हिन्दू
राजा हेमू
के खिलाफ
इस युद्ध
मे अकबर
हार निश्चित
थी लेकिन
अंत मे
एक तीर
हेमू की
आँख मे
आ घुसा
और मस्तक
को भेद
गया।
हेमू विक्रमादित्य मूर्छित
हो गया
घायल हो
कर और
उसके साथी
महावत को
लेकर जंगल
मे भाग
गया। सेना
भी भाग
गयी और
बादशाह अकबर
की सेना
का सामना
करने मे
विफल हो
गई। हेमू
को पकड़
कर अकबर
और उसके
सरंक्षक बहराम
खान के
सामने लाया
गया। अकबर
ने हेमू
की गर्दन
को काट
दिया और
उसका सिर
काबुल भेज
दिया प्रदर्शन
के लिए
उसका बाकी
का शव
दिल्ली के
एक दरवाजे
पर लटका
दिया उससे
पहले घायल
हेमू को
तलवारों से
घोप दिया
लहलुहान किया।
हेमू विक्रमादित्य को
मरने के
बाद दिल्ली
पर पुनः
अधिकार जमाने
के बाद
अकबर ने
अपने राज्य
का विस्तार
करना शुरू
किया और
मालवा को
1562 में, गुजरात
को 1572 में, बंगाल
को 1574 में, काबुल
को 1581 में, कश्मीर
को 1586 में और
खानदेश को
1601 में मुग़ल
साम्राज्य के
अधीन कर
लिया। अकबर
ने इन
राज्यों में
एक एक
राज्यपाल नियुक्त
किया। अकबर
जब अहमदाबाद
आया था
2 दिसंबर 1573 को तो दो हज़ार
विद्रोहियो के
सिर काटकर
उससे पिरामिण्ड
बनाए थे।
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अकबर के महान होने की और भी बहुत सी उप्लब्धिया है जो इतिहास में देखने को मिलती है:
- पंद्रह सौ बासठ में बादशाह अकबर ने युद्ध बंदियों को बंदी बनाये जाने और उनकी पत्नी और बच्चो को खुले मार्किट में नीलाम करने को निषेध कर दिया।
- पंद्रह सौ त्रेसठ में उसने जज़िया कर और तीर्थयात्रा कर को ख़त्म कर दिया जो हिन्दू लोगो पर लगाये जाते थे। बादशाह अकबर ने पन्द्राज सौ चौंसठ मे यह नियम बना दिया कि इसके लिए दूसरे नजरिये से कर लगाया जायेगा कि कोई व्यक्ति कितना धनी है बजाय इसके कि धर्म के आधार पर कर देना पड़े।
- यह पहला शासक था जिसने अपने मंत्रिमंडल में गैर मुस्लिम लोगो को भी रखा था और गैर मुस्लिम लोगो के लिए यह एक मौका था कि वह भी अपने राज्य के काम काज और उस से जुड़े फैसलों में अपनी भागीदारी दे सकते थे क्योंकि इस से पहले किसी भी मुग़ल साम्राज्य में ऐसी व्यवस्था नहीं थी कि हिन्दू किसी अच्छी रैंक के अधिकारी के पद पर नियुक्त हो सके।
- अकबर ने अपने प्रदेश में बाल विवाह को बंद कर दिया था और लडकियों के लिए चौदह साल और लड़कों के लिए सोलह साल की उम्र निर्धारित की।
- बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर ने शादी कर का प्रावधान किया ताकि बहुविवाह की प्रथा को कम से कम किया जा सके।
- अकबर ने विधवा विवाह की प्रथा को भी बल दिया साथ ही उसने सती प्रथा भी को भी बंद कर दिया और सभी अधिकारियो को इस पर अमल करवाने के लिए जोर दिया कि यह केवल एक ही स्थिति में होना चाहिए जब कोई महिला यह चाहती हो कि वह अपने पति के साथ सती होना चाहती है।
- अकबर ने सिविल लॉ की अलग से व्याख्या की और इस तरह की व्यवस्था लागू की जिसमे सभी धर्म अपने अपने रीति रिवाजों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अपनी अपनी नीति बना सकते थे।
- अकबर ने हिन्दू धर्म के पवित्र माने जाने वाले दिनों पर मांस के बिकने पर भी रोक लगाई ताकि दूसरे धर्म के लोगो की भावनाओं का भी ख्याल रखा जा सके।
- उसने हिन्दू साहित्य का अनुवाद करवाने के लिए भी अलग से व्यवस्था की ताकि हिन्दुओं के रीति रिवाज को भी गहराई से समझा जा सके।
- अकबर ने हिन्दू साहित्य का अनुवाद करवाने के लिए भी अलग से व्यवस्था की ताकि हिन्दुओं के रीति रिवाज को भी गहराई से समझा जा सके।
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