जानिए कैसे करें स्कूल का संचालन
दोस्तो अधिकतर लोगो के मन में ये सवाल उठता है कि स्कूल का संचालन कैसे करे. साथियो स्कूल,शिक्षक समाज की सर्वाधिक संवेदनशील इकाई
है। दोस्तों बहुत से लोगो का आरोप है की शिक्षक अपना काम ठीक तरह से नहीं करते लेकिन ये विचार क्यों नहीं किया जाता कि उन्हें पढ़ाने क्यों नहीं दिया जाता? हर दिन गैर साचिक कार्य में इस्तेमाल करता परेशान, अध्यापको की साचिक सोच को सेछिक कार्य कर्मो को पूरी तरह से उध्वस्त कर देता है। दोस्तो बच्चों को पढ़ाना और सिखाना इतना आसान नहीं होता जितना सोचा जाता है और ना ही बच्चे फेल हो शिक्षको द्वारा ऐसा प्रयास किया जाता है । दोस्तों ये जानने के लिए कि स्कूल कैसे चलाये आपको नीचे दी गई जानकारी पूर्णरूप से पढ़नी होगी । तो चलो जानते है कुछ खाश इसके बारे में –
सुधार
के
लिए
क्या
करे - स्कूल कैसे चलाये और स्कूल की शिक्षा को अच्छा बनाने के लिए हमें स्कूल के बारे में अपनी नई सोच का इस्तेमाल करना होगा अर्थात पुरानी रणरीति को बदलना होगा। इस समय में स्कूल के कार्यकाल समझकर शिक्षकों को प्रत्येक दिन अनेक प्रकार की डाक बनाने और आंकड़े देने के लिए मजबूर किया जाता है। जिसके कारण बच्चो की पढाई में दुविधा उत्तपन होती है। छात्र अपने अध्यापको के साथ जुड़े रहने की इच्छा करते है विशेषकर प्राथमिक स्टार पर। स्कूल का कार्यकालीन कामकाज से वास्तव में मुक्त कर प्रभावी शिक्षा संसथान बनाया जाना चाहिए।
विद्यालय
बनाम
सामुदायिक
शिक्षा
केन्द्र
-
दोस्तों हमारे शासकीय विद्यालय बाल शिक्षा (छः से चौदह आयु वर्ग के बच्चों) के लिए कार्य कर रहे है। शिशु शिक्षा के लिए संचालित आंगनवाड़ी और प्रौढ़ शिक्षा के लिए कार्यरत शिक्षा केंद्रों का संबंध विद्यालय से कहने भर को है। सच में इन सभी के बीच अच्छा ताल मेल होना बहुत ही ज़रूरी है। अगर इन तीनो एजेंसी को कार्यकृत कर दिया जाये तो तीन से पचास वर्ष तक के लिए शिक्षा की बेहतर व्यवस्था संभव है।
प्रशासनिक
और
प्रबंध
के
व्यवस्थागत
सुधार - आज शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक सुधार की दृष्टि से शीघ्र सार्थक कदम उठाते हुए हम सभी को ऐसी शिक्षा रणनीति और कार्यक्रम को विकसित करना होंगा जो छात्रों के मन में श्रम के प्रति निष्ठा पैदा करने में सफल हो। समग्रत एक ऐसा प्रभावी शिक्षिक कार्यक्रम बनाने की जरूरत है जिसमे पाठ्यक्रम लचीला और गतिविधि पर आधारित हो। साथ ही बच्चो की ग्रहण क्षमता के अनुरूप भी हो।
कक्षागत पाठ्य योजनाए, स्वयं अध्यापको के द्वारा तैयार की जाए और उन्हें कम्पलीट किया जाये। राज्य की शिक्षा निति निर्धारण में शिक्षाविवादों और कार्यरत शिक्षकों वास्तव में सहभागी बना कर सभी के विचारों को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाये।
जान
भागीदारी
समितियां
प्रबंधन
का
दायित्व
स्वीकारे - दोस्तों शिक्षक प्रश्न तंत्र को भी सालों में अनावश्यक हस्तक्षेप ना करना चाहिए। शिक्षा का पूरा - पूरा अधिकार शिक्षकों को वास्तव में दिया जाना चाहिए । शिक्षा विधियों में बदलाओ करने का अधिकार शिक्षकों को होना चाहिए, प्रशाशनिक अधिकारियों को नहीं।
कक्षाओं में शिक्षक छात्र अनुपात ठीक किया जाना चाहिए । साथ ही पर्याप्त मात्रा में शिक्षक सामग्री की पूर्ति और अध्यापको की भर्ती समय - समय की जानी चाहिए। किताबो की रचना स्थापित रचनाकारों की बजाये अध्यापको और शिक्षा विशेष्यज्ञों के माध्यम से की जानी चाहिए। जो शैक्षिक दृष्टि से ठीक हो।
शैक्षिक सुधारों को महत्वपूर्ण मानना जरूरी। अध्यापको के सहयोग हेतु "राज्य शिक्षक संदर्भ और स्त्रोत केंद्र" स्थापित किये जाये। विद्यालों को सामुदायिक शिक्षा के लिए उत्तरदायित्व बनाया जाना चहिए ।
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