परीक्षा के भूत से निपटने के लिए आसान तरीके
March से ही बोर्ड की परीक्षाएं शुरुआती रूप लेंगी। बहुत से परीक्षार्थियों को एग्जाम के बारे में सोचकर ही बेचैनी महसूस होने लगती है। जब एग्जाम
बहुत नजदीक हों तो दबाव बनना स्वाभाविक हैं, परंतु कठिन अध्ययन करने के बाद स्टूडेंट्स इस तनाव को कम कर सकता है।
लेकिन
सवाल
यह
उठता
है
कि
यदि
छात्र
इस
व्यस्त
जिंदगी
में
किसी
कारणवश
पुरे
साल
पढ़ाई
नहीं
कर
पाया
है
तो
उस
पर
यह
दबाव
और
हावी
हो
जाता
है,
परंतु
इसका
मतलब
यह
नहीं
कि
वह हार मान जाए। छात्रों के मन में परीक्षा की चिंता हमेशा रहती है, पर जनवरी माह शुरू होते ही वे और गंभीर हो जाते हैं।
इस पूरे मामले में सबसे बड़ी दिक्कत का सामना कक्षा दसवीं और बारहवीं के छात्र करते दिखाई पड़ते हैं। कारण यह है कि एक तो उम्र की चंचलता और दूसरा भविष्य के प्रति सचेतता की कमी उन्हें वक्त का एहसास नहीं करा पाती है। दिमाग में उथल-पुथल मच जाती है कि क्या मैं सभी प्रश्नों के उत्तर दे पाऊंगा? क्या सभी उत्तर सही होंगे? जो पाठ्यक्रम छोड़ दिया कहीं उसी में से प्रश्न आ गए तो? थोड़ा और पढ़ लेता तो ठीक रहता। परीक्षा के लिए थोड़ा और समय मिल गया होता तो अच्छा रहता।
इस तरह के न जाने कितने प्रश्न लगभग सभी छात्रों को परेशान करते हैं। थोड़ा-बहुत मानसिक दबाव बेहतर प्रदर्शन के लिए लाभदायक रहता है, मगर ज्यादा दबाव हानिकारक हो सकता है। निम्न बातों पर ध्यान देकर आप परीक्षा के डर को दूर कर सकते हैं।
समय
का सदुपयोग:
समय
के
सदुपयोग
का
अच्छा
तरीका
है
कि
आप
अपनी
क्लास
के समय
का
पूरा
उपयोग
करें।
जब
अध्यापक
क्लास
में
पढ़ाते
हैं
तो
छात्र
आपस
में
बातें
करने
या
इधर-उधर
समय
नष्ट
करने
में
क्या
पढ़ाया
जा
रहा
है,
उस
पर
ध्यान
नहीं
देते।
यह
भी
टाइम
की
बर्बादी
है।
जब
टीचर
क्लास
में
पढ़ा
रहे
हैं
तो
उसे
ध्यान
से
समझिए
और
जो
समझ
में
न
आए,
उसे
तुरंत
पूछिए।
कई
छात्र
कुछ
समझ
में
न
आने
पर
संकोचवश
उसे
अधयापको
से
पूछते
नहीं
हैं।
पाठ्यक्रम
में अंकों
के अनुसार
पढ़ाई: आजकल बोर्ड एग्जाम से पहले प्रत्येक बोर्ड विद्यार्थियों की फैसिलिटी के लिए ब्लूप्रिंट जारी करता आ रहा है। इस पर भी सावधानी जरूरी जान पड़ती है कि बाजार में उपलब्ध प्रश्न बैंकों पर दिए गए ब्लूप्रिंट को को एक बार बोर्ड की वेबसाइट खोलकर
मिलान अवश्य कर लें और अंतिम रूप से बोर्ड की वेबसाइट के ब्लूप्रिंट को ही स्वीकार करें।
ऐसा करने से अध्याय की महत्ता और उस पर लगाया जाने वाला अध्ययन का समय उचित रूप से बांटा जा सकता है।
जिस लेसन से महज दो अंकों का प्रश्न पूछा जाना हो उस पाठ के विस्तृत प्रश्न को याद करने का अनुपयोगी समय भी सकारात्मक परिणाम की ओर अग्रसर कर सकेगा। साथ ही इस
बात की जानकारी भी सहज रूप में उपलब्ध हो पाएगी कि किस इकाई से ऑब्जेक्टिव प्रश्न पूछे
जाने हैं और कौन-सी इकाई बड़े प्रश्नों के लिए आरक्षित रखी गई है। इस प्रकार से छात्र अपने प्लान को प्रथम पायदान के रूप में उचित दिशा प्रदान कर सकेंगे।
सैद्धांतिक और प्रायोगिक प्रश्नों पर जोर: प्राय: छात्र
एक्सपेरिमेंटल सेक्शन
से भागते
हुए बड़े
अंकों का
नुकसान कर
बैठते हैं।
मिसाल के
तौर पर
वाणिज्य संकाय
के छात्र
एकाउंटेंसी विषय
पर घबराते
हुए उसके
सैद्धांतिक प्रश्नों
पर आधारित
होकर एग्जाम
रूम में
पहुंचते हैं
और प्रायोगिक
प्रश्नों को
छोड़कर अपनी
श्रेणी बिगाड़
बैठते हैं।
कुछ ऐसी
ही कहानी
विज्ञान संकाय
के छात्रों
के साथ
भी देखी
जा रही
है।
बढ़ाएं दिमाग की ताकत: चाइल्ड सकारात्मक
एनर्जी, विस्मित
भाव और
उत्सुकता से
सोचते हैं।
अपने आपको
दिवास्वप्न देखने
दीजिए। इससे
दिमांक तीक्ष्ण
होगा और
दिमाग की
ताकत भी
बढ़ेगी। अपने
आपको केवल
एक ही
व्यक्ति न
बनने दें।
एक ही
व्यक्ति में
बहुत सारे
व्यक्तित्व पैदा
कीजिए। आप
जितने अधिक
से अधिक
हो सकते
हैं, उतने
तरीकों से
सोचिए। कोई गलती
न कर
बैठें, इस
विचार पर
लगाम दीजिए।
इस दुनिया
में कोई
परफेक्ट नहीं
होता, कभी
हो भी
नहीं सकेगा
इसलिए अपनी
गलतियों से
सीखिए। नई
चीजों को
आजमाने से
न डरें,
क्योंकि नई
चीजों के
प्रयोग से
आपके दिमाग
में कई
नए विचार
भी आ
सकते हैं।
आप अपने
दिमाग को
आश्चर्यचकित होने
दीजिए।
परीक्षा का डर मन से निकालिए: एग्जाम का
नाम सुनते
ही आपकी
तबियत बिगड़
जाती है
और आप
तनाव में
आ जाते
हैं, याद
किये हुए
उत्तर भी
भूल जाते
हैं या
फिर उन
उत्तरों को
लिखने के
लिए टाइम
नहीं बचता।
इससे आपकी
पूरी मेहनत
बर्बाद हो
जाती है।
इसका कारण विषय
की पर्याप्त
तैयारी का
न होना
है। इसका
उपाय लगातार
आगे बढ़ते
रहना ही
है। और
यदि यह
डर आपको
सता ही
रहा है
तो इसका
उपाय है
कि आप
इस डर
से लड़िए
और इसे जीत
लीजिए।
डर के विषय
में आचार्य
चाणक्य ने
कहा है-
'भय को
पास न
आने दो
और जैसे
ही वो
पास आए,
उस पर
हमला कर
उसे खत्म
कर दो।'
Take a Look on Below Table
0 comments:
Post a Comment